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लेखनी कहानी -08-Mar-2023

भूल जाता हूं

वैसे तो दिमाग शरीर का एक बहुत पेचीदा अंग है लेकिन मेरा शायद कुछ ज्यादा ही पेचीदा है। कभी तो मैं चार-पांच साल पहले वाली बात भी याद रखे बैठा हूं लेकिन कभी कभी दो मिनट पहले की बात ही भूल जाता हूं। बस ऐसे ही कुछ किस्से आप सभी के सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं जो मेरी महान यादाश्त का विस्तृत वर्णन करते हैं।


काम करते करते गलतियां होना तो आम बात है लेकिन यहां बात थोड़ी अलग ही है। क्यूंकि यह बात मुझसे संबंधित हैं तो इसमें अटपटापन होना तो लाजमी है। छ महीने के मेरे इस सफर में अलग अलग जगह पर इतने औजार और काम से संबंधित सामग्री भूल चुका हूं कि कोई अंदाजा नहीं है। लेकिन यहां बात छोटी छोटी वस्तूयों की नहीं बल्कि मेरी भूलों की हो रही है।


1, पहली भूल:- सबसे पहली भूल थी (वैसे तो और भी होंगी लेकिन मुझे याद नहीं) बाइक में चाबी लगी हुई रह गई। मैं भी जेब में चाबी देखना भूल गया और मैं उसे बस स्टैंड पर छोड़ कर बस पकड़ दूसरे शहर चला गया था। यह तो भगवान की गनीमत है कि कहीं से एक कपड़ा उड़कर बाइक के आगे वाले हिस्से पर आ गिरा और चाबी उसके नीचे छिप गई। एक सौ ग्यारह रुपए की मन्नत भी मांगी थी कि बाइक बच जाए बस और भगवान ने भी मेरी सुन ली। 


2, दूसरी भूल:- मैं अक्सर फोन में आनलाइन अलग अलग स्टेशनों के बीच चलती ट्रेन की टिकट्स की कीमतें देखता रहता हूं। ऐसे ही एक बार टिकट बुकिंग कर डाली लेकिन अपने शहर की जगह दूसरे शहर जो लगभग चालीस किलोमीटर दूर स्थित था, वाली टिकट बुक करा बैठा। उस दिन भी पता नहीं टीटी मामा दयावान थे यां फिर मेरा मुकद्दर ही बुलन्द था जो उन्होंने बिना कोई जुर्माना किए मुझे छोड़ दिया। लेकिन मुझपर इसका नकारात्मक प्रभाव जरुर पड़ा। अब अक्सर मुंह उठाए ऐसे ही ट्रेन में बिंदास बिना टिकट घूमता रहता हूं (मज़ाक कर रहा हूं)


3, तीसरी भूल:- उस दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। बैटरी लो होने से मोबाइल भी बंद हो गया था। रात नौ बजे के आसपास अंधेरे में पांच नंबर प्लेटफार्म की जगह ग़लती से एक नंबर प्लेटफार्म पर खड़ी ट्रेन में चढ़ गया और उस दिन शायद भगवान भी मज़ाक के मूड़ में बैठे हुए थे क्योंकि उस पर भी लालगढ़ एक्सप्रेस लिखा हुआ था। जिस ट्रेन में चढ़ गया था। बस फर्क इतना था कि वो ट्रेन होम की तरफ जाने वाली नहीं थी बल्कि उस तरफ से आई थी और दूसरी तरफ जा रही थी। पन्द्रह मिनट बाद फोन चार्ज कर चालू किया और लोकेशन देखा तो पूरा ब्रह्मांड आंखों के आगे घूमने लगा। जब गौर से देखा तो पाया कि मलोट की जगह डबवाली पहुंच गया था। चुपचाप वहीं उतर गया और वापसी वाली गाड़ी का इंतजार करने लगा। क्यूंकि वहां से सीधे होम की तरफ जाने वाला कोई रुट नहीं था। पुछताछ पर पता चला कि दो बजे तक कोई गाड़ी नहीं आएगी। अब इतनी रात गए और ऊपर से बरसात के चलते बस सेवा भी निलंबित थी। बाहर से पेटपूजा करने के बाद मैं वापस स्टेशन पर पहुंच गया। स्टेशन मास्टर अच्छा इंसान था जिसने परेशानी जान हमारे लिए चाय का प्रबंध भी करवा दिया। उसकी अच्छाई देख कर मन खुश हो गया और मैंने भी टिकट खरीद ली। अब स्टेशन मास्टर के सामने बिना टिकट चढ़ना तो मुझे खुद को ही अच्छा नहीं लगा। ढाई बजे की गाड़ी से वापस लौट कर चार बजे की गाड़ी पकड के पांच बजे घर पहुंचा और दो घंटे सोने के बाद वापस काम पर चला गया। लेकिन वो बरसात की रात आज भी जहन में तरोताजा है। इतनी नीरसता भरी रात में स्टेशन मास्टर की चाय की एकमात्र अच्छी चीज हुई थी।


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7 Comments

Gunjan Kamal

12-Mar-2023 09:11 AM

बहुत गंभीर बीमारी है

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Renu

10-Mar-2023 10:10 PM

आपकी भूलवश हुई गलतियों में भी ज्यादा घाटे का सौदा नहीं हुआ👍

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अदिति झा

09-Mar-2023 07:03 PM

Nice 👌

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